सनातनियों से अंतर्राष्ट्रीय कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने किया आवाहन

रायपुर। राजधानी रायपुर के सेजबहार में चल रही श्री शिव महापुराण कथा के दूसरे दिन अंतर्राष्ट्रीय कथाकार पंडित प्रदीप मिश्रा जी ने कथा में आए लाखों भक्तों को कथा रूपी अमृत का रसपान कराया। उन्होंने कहा हिंदुओं का नव वर्ष चैत्र महीने में शुरू होता है जिसमें हम नव वर्ष भगवान की भक्ति और मंदिरों में जाकर भगवान की पूजन अर्चन कर नववर्ष मनाते हैं अंग्रेजी नव वर्ष में भगवान की भक्ति नहीं बल्कि फुहड़ता और शराब परोसी जाती है ऐसे में समस्त सनातनियों से अंतर्राष्ट्रीय कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने आवाहन किया है कि 31 दिसंबर की रात को 31st मनाओ पर मंदिरों में जाकर शिवालयों में जाकर ही खुशियां मनाना चाहिए जिससे आगे के जीवन मे भगवान का आशीर्वाद बना रहे।

आचार्य श्री ने कथा में बताया कि यदि हम भगवान की पूजन अर्चन में बैठे हैं और हमारा मन पूजन अर्चन में नहीं है हमारे मन में किसी तरह की भक्ति श्रद्धा और भगवान के प्रति विश्वास नहीं है फिर भी यदि हम भगवान का पूजन अर्चन करते हुए कोई भी चीज समर्पित कर रहे हैं तो उसका फल हमको नहीं मिलेगा क्योंकि हमने मन से पूजन अर्चन नहीं किया। उन्होंने कहा कि यदि हम भगवान की भक्ति करें तो हमारे मन में श्रद्धा और विश्वास होना चाहिए तभी हमारा कार्य सफल होगा।

सनातन धर्म को मजबूत बनाने आगे आए हिंदू समाज
श्री शिव महापुराण की कथा के दौरान आचार्य श्री ने आगे कहा कि सनातन धर्म को मजबूत बनाने के लिए हमारे हिंदू भाई बहनों को मजबूती के साथ कार्य करना चाहिए यदि अपने बच्चों को ज्ञान और शिक्षा देनी है तो बच्चों को झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्या माता और वीर शिवाजी जैसे वीरों की गाथाएं सुनाएं और वैसे ही उनको वस्त्र पहनाए निश्चित ही बच्चों के मन में वीर की भावना उत्पन्न होगी। भारत देश वीर सपूतों का देश है वीर जवानों का देश है इसलिए सनातन धर्म को आगे बढ़ाने पर जरूर विचार करें। दूसरे धर्म में जाकर जूठन खाने का कार्य नहीं होना चाहिए, आचार्य श्री ने यह भी कहा कि अपने बच्चों को ऐसे कपड़े भी नहीं पहनाना चाहिए जिससे वह जोकर की तरह दिखने लगे।

साधारण वस्तु यदि शिवजी में चढ़ जाए तो उसकी कीमत बढ़ जाती है

शिव पुराण कथा में भक्तों को भगवान की महिमा बताते हुए पंडित प्रदीप मिश्रा जी ने कहा कि भगवान भोलेनाथ यह नहीं कहते कि मुझे धन दो संपदा दो पूंजी दो बल्कि भगवान अपने भक्तों को कहते हैं कि मुझे थोड़ा समय दो, भाव दो समर्पण दो, जो हो सके एक लोटा जल के साथ पत्र पुष्प अक्षत अर्पण कर दो यह भगवान के लिए नहीं बल्कि भक्तों के लिए है जो वापस उनको मिलेगा। आचार्य श्री ने आगे बताया कि भगवान भोलेनाथ को जो भी दो वह धारण कर लेते हैं यदि हम उन्हें अक्षत चढ़ा रहे हैं तो उसको धारण करते हैं पुष्प चढ़ा रहे हैं उनको धारण करते हैं भस्म चढ़ा रहे हैं उनको धारण करते हैं भगवान यह नहीं देखते हैं कि मेरा भक्त मुझे कोई महंगा वस्तु चढ़ाएगा भगवान यह देखते हैं कि मेरा भक्त भाव से मुझे क्या चढ़ा रहा है वह सभी चीजों को भगवान महादेव धारण करते हैं।

मस्तक में लगाने वाले तिलक का भी महत्व

आचार्य सिंह ने तिलक का उपाय और तिलक के महत्व को बताते हुए भक्तों को बताया कि चार तरह के तिलक हमारे लिए अलग-अलग कार्य में प्रयोग होता है जिसमें पहला सफेद आंकड़े की जड़ का तिलक, कोई भी कार्य अटक रहा हो किसी तरह की बाधाएं आ रही हो कोई काम हो ही नहीं रहा हो तो सफेद आंकड़े की जड़ को घिसकर किसी भी अष्ट विनायक गणेश जी का स्मरण कर उस पर अष्ट विनायक के नाम का तिलक कर अपने मस्तक पर तिलक लगाकर जाए तो कितना भी जटिल से जटिल काम अटका पड़ा होकर ही रहेगा।

दूसरा तिलक अपामार्ग के बीज को सुखाकर पीसकर जहां शिवजी का जलधारी नीचे गिरता है वहां पर चढ़ाकर उसको 1महीने तक अपने मस्तक में धारण रोज करना चाहिए कोई धन लेकर गया हो वापस नहीं कर रहा हो या किसी का कार्य कोर्ट में अटका हो निश्चित ही उसे काम में सफलता मिलेगी

दूर्वा में ऐसा गुण है कि कार्य सिद्धि नहीं हो पा रही है तो कार्य चलना शुरू हो जाता है जो भी दूर्वा को सुखाकर भस्म बनाकर उसे भोलेनाथ में चढ़कर 20 दिन उसका तिलक लगाया जाए तो निश्चित ही व्यापार में सफलता मिलेगी।
चौथे नंबर पर बेलपत्र की जड़ का तिलक लगाकर यदि हम जाएं और हमारे ऊपर असत्य भारी पड़ रहा है तो सत्य की विजय के लिए यदि हम लगातार बेलपत्र की जड़ का तिलक लगाकर अपने कार्य के लिए जाते हैं तो निश्चित ही सत्य की जीत होती है।

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